🏫 उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों का बंद होना: सच्चाई, विरोध और भविष्य की लड़ाई
✨ प्रस्तावना
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2024-25 में जो शिक्षा नीति अपनाई गई है, वह राज्य के हजारों ग्रामीण बच्चों के भविष्य पर गहरा प्रभाव डाल रही है। लगभग 27,000 से अधिक सरकारी स्कूलों को या तो बंद किया जा रहा है या दूसरे स्कूलों में मर्ज (विलय) किया जा रहा है। यह फैसला शिक्षा में सुधार के नाम पर लिया गया है, लेकिन इसके विरोध में कई राजनीतिक दल, शिक्षक संगठन और अभिभावक खड़े हो चुके हैं।
📊 आंकड़े और तथ्य
- 50 से कम छात्रों वाले प्राइमरी और अपर-प्राइमरी स्कूलों को मर्ज किया जा रहा है।
- लगभग 29,000 स्कूलों को चिह्नित किया गया है जिनमें से एक बड़ा हिस्सा गांवों में स्थित है।
- हर स्कूल के 1.5–2.5 किमी के दायरे में बच्चों को नए स्कूल भेजा जाएगा।
🎯 सरकार का तर्क
UP सरकार के अनुसार इस निर्णय के पीछे मुख्य उद्देश्य हैं:
- शिक्षा संसाधनों का बेहतर उपयोग
- अच्छी इमारत, सुविधाएं, शिक्षक और डिजिटल तकनीक एक जगह केंद्रित करना
- बच्चों को एक ही स्थान पर उच्च गुणवत्ता की शिक्षा देना
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार का मानना है कि बिखरे हुए संसाधनों के बजाय मजबूत स्कूल केंद्र बनाने से पढ़ाई बेहतर होगी।
🚫 विरोध की लहर
हालांकि सरकार इस फैसले को "सुधार" बता रही है, लेकिन इसका जबरदस्त विरोध हो रहा है:
1. AAP का आंदोलन: स्कूल बचाओ अभियान
- संजय सिंह ने “शराब की दुकान नहीं, स्कूल चाहिए” नारे के साथ उत्तर प्रदेश में आंदोलन छेड़ दिया है।
- उन्होंने कहा कि सरकार ने बिना तैयारी के ग्रामीण बच्चों से उनका मूल अधिकार छीन लिया है।
2. NSUI का प्रदर्शन
- कांग्रेस की स्टूडेंट विंग NSUI ने लखनऊ में विरोध प्रदर्शन किया।
- उनका दावा है कि यह शिक्षा का निजीकरण है और गरीबों को शिक्षा से दूर करने की साजिश है।
3. सपा का झंडा रोपो आंदोलन
- समाजवादी पार्टी ने उन स्कूलों पर झंडा रोपण का कार्यक्रम चलाया जिनका विलय हो रहा है।
- अखिलेश यादव ने बयान में कहा कि सरकार शिक्षा के खिलाफ साजिश कर रही है।
⚖️ हाईकोर्ट और कानून का रुख
- 7 जुलाई 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार के निर्णय को सही ठहराते हुए कहा कि यह RTE (Right to Education Act) का उल्लंघन नहीं है।
- कोर्ट के अनुसार, यदि 3 किमी के भीतर बच्चों को स्थानांतरित किया जा रहा है, तो यह कानून के दायरे में आता है।
🧑🏫 शिक्षकों की स्थिति
- शिक्षक संघों का कहना है कि हेडमास्टर की पोस्ट हटाई जा रही है, जिससे हजारों शिक्षकों की पदोन्नति रुक गई है।
- कुछ जगहों पर रसोइयों और चपरासियों को भी हटाया जा रहा है।
- संविदा शिक्षकों की नई भर्ती पर रोक जैसी स्थिति बन गई है।
🧒 बच्चों की समस्याएं
ग्रामीण इलाकों में स्कूल मर्ज के बाद जो समस्याएं सामने आ रही हैं:
- 1-5 कक्षा के छोटे बच्चों को 2–3 किमी दूर भेजा जा रहा है, जो जोखिम भरा है।
- कुछ स्कूलों में भवन तो बंद कर दिए गए हैं लेकिन नए भवन तक बस/रिक्शा की सुविधा नहीं दी गई।
- बारिश, गर्मी और जानवरों के डर से बच्चे स्कूल जाना छोड़ रहे हैं।
🎒 Gotka गाँव का उदाहरण
मेरठ के गोटका गांव में 40 बच्चों वाला स्कूल मर्ज किया गया। अब बच्चों को 2.5 किमी दूर जाना पड़ता है।
छात्रा शिवानी (कक्षा 3) बताती है:
"मम्मी रोज़ छोड़ने आती हैं नहीं तो डर लगता है… अकेले नहीं जा सकती।"
🧸 नई योजना: बाल वाटिका
सरकार ने खाली भवनों में 3–6 वर्ष की उम्र के बच्चों के लिए “बाल वाटिका” शुरू करने का ऐलान किया है।
लेकिन ग्रामीण शिक्षक कहते हैं —
"जहाँ शिक्षक, कुर्सी, पानी तक नहीं है, वहाँ बाल वाटिका कैसे चलेगी?"
⚠️ क्या यह निजीकरण की ओर पहला कदम है?
- कुछ शिक्षक और विपक्षी दल इसे शिक्षा के ‘सॉफ्ट प्राइवेटाइजेशन’ का नाम दे रहे हैं।
- वे मानते हैं कि जब सरकारी स्कूलों की संख्या घटेगी, तो निजी स्कूलों को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।
- गरीब और दूरदराज के बच्चों को मजबूरन स्कूल छोड़ना पड़ेगा।
🔎 FIR और प्रशासनिक शिकंजा
अब तक स्कूल बंदी से सीधे जुड़ी FIR की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन कई शिक्षक, प्रधान और अभिभावकों पर दबाव की बातें सामने आई हैं:
- कुछ जिलों में मुखिया या प्रधान द्वारा विरोध करने पर जांच शुरू हुई।
- कुछ अभिभावकों ने कहा कि उन्हें “अनुशासनहीनता” में फँसाने की धमकी दी गई।
📢 शिक्षक संगठनों का अल्टीमेटम
- उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ ने पूरे राज्य में विरोध दर्ज किया है।
- उन्होंने मांग की है कि सरकार स्कूलों का भौगोलिक मूल्यांकन पुनः करे और कम से कम बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
🧠 भविष्य की संभावनाएं
- AAP द्वारा सुप्रीम कोर्ट याचिका
- स्कूल बस/शटल सेवा का प्रस्ताव
- प्राथमिक शिक्षा अधिकार अधिनियम में संशोधन की माँग
- शिक्षक यूनियनों की हड़ताल या भूख हड़ताल
- सरकारी बाल वाटिका का पायलट प्रोजेक्ट
🗣️ जनता की राय
“मेरा बच्चा अकेले नहीं जा सकता, स्कूल तो पास होना चाहिए।” — सीता देवी, बलिया
“अगर ये स्कूल बंद होंगे तो गाँव के बच्चे कहाँ पढ़ेंगे?” — विजय सिंह, प्रधान, कौशांबी
✅ निष्कर्ष: सुधार या साज़िश?
यह फैसला कुछ लोगों को शिक्षा सुधार जैसा लगता है, जबकि दूसरों को यह एक गहरी राजनीतिक चाल।
अगर बच्चों की सुरक्षा, पढ़ाई, माता-पिता की सुविधा और शिक्षक की नौकरी खतरे में है — तो यह केवल संख्या का खेल नहीं बल्कि समाज के भविष्य का सवाल है।
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